क्या अब भी हम एक नहीं होंगे:- तस्लीमा नसरीन

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कोरोना वायरस के संबंध में अनेक ऐसे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर वैज्ञानिक नहीं दे रहे। उनका कहना है कि यह वायरस नया है, इसलिए इससे संबंधित बहुतेरे प्रश्नों के उत्तर हमें मालूम नहीं हैं। एक प्रश्न यह है कि एशिया में कोरोना से मरने वालों की संख्या यूरोप और अमेरिका की तुलना में कम क्यों है। इस बारे में कुछ अनुमान हमारे सामने हैं।

इनमें से एक है बीसीजी का टीका। एशियाई देशों में बच्चों को छोटी उम्र में ही टीबी से बचाने के लिए बीसीजी का टीका दिया जाता है। यह पाया गया है कि जिन देशों में बीसीजी का टीका दिया जाता है, वहां कोविड-19 से तुलनात्मक रूप से कम लोग संक्रमित हो रहे हैं, और मारे जाने वालों का आंकड़ा भी कम है।

एक तथ्य यह भी है कि यूरोप और अमेरिका में कोरोना वायरस ए और सी ने हमला बोला है, जबकि अफ्रीका और एशिया में कोरोना वायरस बी है। पता यह चला है कि कोरोना वायरस बी वस्तुतः ए और सी की तरह भीषण नहीं है। तीसरा तथ्य यह है कि यूरोप और अमेरिका की तुलना में दक्षिण एशिया में युवाओं की जनसंख्या अधिक है।

युवाओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बुजुर्गों की तुलना में अधिक है। युवा या तो कोविड-19 का शिकार कम बन रहे हैं, या उसकी बड़ी आबादी इससे लड़कर स्वस्थ हो जा रही है। क्या बढ़े तापमान के कारण भी एशिया में आंकड़ा उतना भयावह नहीं दिख रहा? विज्ञानियों ने हालांकि इस संभावना को नकार दिया है। इस संबंध में अध्ययन चूंकि अभी जारी है, और वायरस में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) भी हो रहा है, ऐसे में, किसी भी संभावना को पूरी तरह सही नहीं ठहराया जा सकता।

दक्षिण एशिया के लोग कोविड-19 के मौजूदा हमले से अगर तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हों, तब भी इसके दूसरे चरण के हमले का उन पर कैसा असर होगा, यह कहा नहीं जा सकता। वायरस की प्रकृति से जो विशेषज्ञ परिचित हैं, वे हमें इसके दूसरे चरण के लिए तैयार रहने के लिए कह रहे हैं। उनका आकलन है कि वायरस का दूसरा हमला ज्यादा भयावह हो सकता है।

अभी तक कोविड-19 के हमले में दुनिया भर में करीब तीन लाख मौतें हो चुकी हैं। इसके बाद भी विशेषज्ञ अगर वायरस के दूसरे हमले के बारे में सतर्क कर रहे हैं, तो स्थिति की गंभीरता समझी जा सकती है। कोरोना वायरस में उत्परिवर्तन इतनी जल्दी-जल्दी हो रहा है कि चिकित्सा विशेषज्ञों को यह आशंका है कि एक समय इन्फ्लुएंजा की तरह यह वायरस भी हर साल धमक सकता है।

बताया तो यह भी जा रहा है कि अगर अमेरिका ने अब भी पूरी तैयारी नहीं की, तो अगले जाड़े में उसे और भी भीषण नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहना पड़ सकता है। इधर स्थिति यह है कि दुनिया के तमाम देशों के लोग घरों में बंद होने से ऊब गए हैं। वे अब जीवन के पुराने ढर्रे पर लौटना चाहते हैं। मैं भी घर में बंद हूं। मेरे साथ बस मेरी पालतू बिल्ली है।

इस तरह खिड़की-दरवाजे बंद कर मनुष्य भला कब तक जीवित रह सकता है! इस जीवन में उल्लास नहीं है, जिंदा रहने का एहसास भर है। मैं तो सोच रही हूं कि टीका लेने के दिन ही दरवाजा खोलूंगी, उससे पहले नहीं। पूरे विश्व में आर्थिक गतिविधियां ठप हो गई हैं।

कारखाने बंद हैं, उत्पादन बंद है और बेरोजगारों की संख्या बढ़ रही है। लोग सब कुछ खोल देने के लिए सरकारों पर दबाव बना रहे हैं। सब कुछ खोलना तो पड़ेगा ही। हमें वायरस के साथ ही जीना सीखना होगा। लोग वायरस से संक्रमित होने का जोखिम तो उठाना चाह रहे हैं, पर भूख से मरना उन्हें मंजूर नहीं है।

हमारे सामने एक बड़ा प्रश्न यह है कि क्या हमें हमारा पहले वाला जीवन वापस मिलेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना के बाद हमारा जीवन पहले जैसा कतई नहीं होगा। इस बारे में सोचते ही मेरे दिल में एक हूक-सी उठती है। विमान और ट्रेन से की जाने वाली यात्राएं, पर्यटन स्थलों की सैर, गांवों से लेकर शहरों तक में घूमना, सिनेमा, थियेटर, रेस्तरांओं में जाना, भीड़ भरी शादियों और सेमिनारों में जाना-क्या यह सब छूट जाएगा?

प्रेम और सौहार्द के लिए शारीरिक निकटता जरूरी है। प्रेम दूर से तो संभव नहीं है। तो क्या अब मांएं अपनी संतानों को बांहों में नहीं भरेंगी? क्या दोस्त एक दूसरे का आलिंगन नहीं करेंगे? वैज्ञानिक तो इस बारे में हमें कोई उम्मीद नहीं दिखा रहे। उनका कहना है कि कम से कम 2022 तक व्यक्तिगत दूरी का पालन करना होगा। ऐसे में, शायद दूरी बरतना ही मनुष्य का स्वभाव बन जाएगा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए हर व्यक्ति का स्वास्थ्य परीक्षण करना पड़ेगा। यानी 780 करोड़ लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण! किसके शरीर में वायरस है, किसके शरीर में नहीं है, यह देखना होगा। वैज्ञानिकों ने अमेरिका को स्पष्ट कहा है कि अगर पूरी अर्थव्यवस्था को खोलना है, तो रोज पांच लाख टेस्ट करवाएं, और जो संक्रमित पाए जाएं, उन्हें अलग करें। ऐसा न करना भारी जोखिम उठाना होगा। लेकिन मनुष्य है कि वह जोखिम उठाकर भी अपने पुराने जीवन में लौटना चाहता है।

मनुष्य के साथ वायरस का युद्ध जारी है। इस युद्ध में कौन हारेगा, कौन जीतेगा, यह कह नहीं सकते। अलबत्ता मनुष्य के सम्मिलित प्रयासों से इस वायरस को हराया जरूर जा सकता है। लेकिन फिलहाल तो ऐसा होता नहीं दिख रहा। अमेरिका वैश्विक तबाही के लिए चीन को जवाबदेह मान रहा है, तो चीन भी पलटवार कर रहा है।

अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को दी जाने वाली मदद रोक दी है। उधर चीन ने ताजा कटने वाले पशुओं के मांस का बाजार खोल दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन से यह बाजार बंद करने के लिए क्यों नहीं कहा, यह किसी को मालूम नहीं। यूरोपीय संघ के बारे में पता था कि इसका गठन यूरोप की बेहतरी के लिए हुआ है। लेकिन जब स्पेन और इटली भारी तबाही से गुजर रहे थे, तब कितने यूरोपीय देश उनकी मदद के लिए आगे आए?

कोरोना के इन चरम दुर्दिनों में जब विश्व मानवता के एकजुट होने की आवश्यकता है, तब विवाद, झगड़े और आरोप-प्रत्यारोप सामने आ रहे हैं। वैश्विक स्तर पर नेतृत्व के अभाव में सभी देश अपने-अपने स्तर पर कोरोना से जूझ रहे हैं। यह महामारी भी यदि पूरे विश्व को एकजुट नहीं कर पाई, तो फिर वैश्विक एका कभी संभव ही नहीं है।

Thank you Amar Ujala

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