ऑटोमेटिक रोबोट, वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला पूरी तरह से तैयार कर लिया है। यह कोरोना वायरस से संबंधित स्वैब परीक्षणों को सटीक तरीके से अंजाम देने में सक्षम है। यह कामयाबी डेनमार्क के वैज्ञानिको को हासिल हुई है। ऐसा दावा किया जा रहा है कि इस रोबोट के बाजार में आने से नमूने लेने वालों के कोविड-19 से संक्रमित होने का खतरा नहीं रहेगा।
डेनमार्क में अब तक कोरोना संक्रमण के 11,593 मामले सामने आए हैं। जबकि 568 लोगों की मौत हो गई है। यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न डेनमार्क के वैज्ञानिकों का कहना है कि लैब मैं तैयार इस रोबोट को अब खरीददारों का इंतजार है। इसका बड़े पैमाने पर निर्माण होने में तीन से चार महीने लग सकते हैं।
कोई व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित है या नहीं इसका पता लगाने के लिए दुनियाभर में अलग-अलग तरह के परीक्षण मौजूद हैं। कहीं पर खून की जांच की जाती है तो कहीं स्वैब के नमूने लिए जाते हैं। हालांकि सबसे सटीक तरीका स्वैब परीक्षण है। इसमें नाक या गले के अंदर ईयरबड जैसा दिखने वाला स्वैब डालकर नमूना लिया जाता है।
स्वैब लेने के दौरान स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई किट पहननी होती है। यह पीपीई किट दोबारा इस्तेमाल नहीं होती इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि वे कम से कम आठ घंटे इसे पहनकर रखें। इस दौरान वे न तो शौचायल जा सकते हैं और न ही कुछ खा-पी सकते हैं। जितने ज्यादा परीक्षण हो रहे हैं उतना ही स्वास्थ्यकर्मियों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। इस स्थिति में रोबोट काफी मददगार हो सकता है।
सारे काम करेगा रोबाट
वैज्ञानिकों ने इस रोबोट को थ्रीडी प्रिंटर की मदद से तैयार किया है। मरीज रोबोट के सामने बैठकर मुंह खोलेंगे और यह स्वैब नमूने लेकर उसे टेस्ट ट्यूब में डालकर ढक्कन बंद कर देगा। रोबोट को बनाने वाले थियुसियुस रजीत सवारीमुथु ने कहा कि मैं उन लोगों में से एक था जिन्हें रोबोट ने सबसे पहले टेस्ट किया था। मैं यह देखकर हैरान था कि रोबोट ने कितनी आसानी से स्वैब को वहां पहुंचा दिया जहां उसे पहुंचाना चाहिए था। यह एक बड़ी सफलता है। रोबोट का फायद यह भी है कि ये न तो थकेगा और न ही काम करके उबेगा।