“पहला इकरार”/- अमनिंदर सिंह & सिमरन सेतिया की कलम से

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 ख़ामोशी में हर पल गुज़रता जा रहा है,
 बेहोशी में आज का समा सारा है,
 खुशबू से घिरा जग सारा है,
दिल में आज बेचैनी का आलम सा है,
 मोहब्बत भरे दिल की आज एक गुजारिश है,
 किसी की हां सुनने को बेचैन यह दिल बेचारा है,
 उनके आने की पैगाम से ही,
 बहका लग रहा जग सारा है,
 मोहब्बत की आहट भर से ही ,
 आज का दिलकश बड़ा नज़ारा है,
 उनसे मिली वह पहली नजर,
कर गई है कुझ ऐसा असर,
मानो खुश हूँ मैं,
पागल लग रहा जग सारा है,
बस उनकी हां की एक तमन्ना है,
बाकी सब लग रहा बेगाना है,
समय जैसे थम गया हो,
सांसे जैसे रुक गई हों,
इंतज़ार वक़्त के साथ साथ,
लम्बा होता जा रहा है,
दिल की धड़कन और घड़ी की टिक-टिक ,
अचानक एक एक हो गई हो,
मानो बस जान निकलना ही बाकी रह गई हो,
कभी जिनका इंतज़ार था, वह मेरे सामने खड़ी थी,
जो दिल मे था उसे बस जुबां पर लाना बाकी था,
मैंने भी हिम्मत जुटा ली थी,
जो दिल मे था उसे होठों पर ला दिया, उसने भी हां मे सर हिला दिया,
नशे में चूर मैंने भी उसे गले लगा लिया और प्यार अपना उसे जता दिया,
खामोशी का हर पल खुशी में बदल गया था,
सारा इंतजार खत्म हो गया था दिल की बेचैनी कहीं दूर चली गई थी, बस प्यार की सुगंध ही हर जगह महक रही थी…… !!
                अमनिंदर सिंह
               सिमरन सेतिया