‘पांव के छालों’ पर कहे गए शेर…

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कोई जुगनू कोई तारा न उजाला देगा
राह दिखलाएँगे ये पाँव के छाले मुझ को
– कामिल बहज़ादी

कसमसाते हैं पाँव के छाले
है अभी भी कोई सफ़र बाक़ी
– ओम प्रभाकर

रेत है गर्म पाँव के छाले
यूँ दहकते हैं जैसे अंगारे
– अली सरदार जाफ़री

हमारे पाँव के छाले हमारी मंज़िल तक
उबल उबल के नया रास्ता बनाते हैं
– राकेश राही

हमारे पाँव के छाले ही ये समझते हैं
कि तेरे प्यार की ख़ातिर कहाँ कहाँ भटके
– अनुभव गुप्ता

ये ख़ुश्क लब ये पाँव के छाले ये सर की धूल
हम शहर की फ़ज़ा में भी सहरा-नवर्द हैं
– इक़बाल हैदर

ज़िंदगी नाम है चलने का तो चलते ही रहे
रुक के देखे न कभी पाँव के छाले हम ने
– अफ़ज़ल इलाहाबादी

धरती को मेरी ज़ात से कुछ तो नमी मिली
फूटा है मेरे पाँव का छाला तो क्या हुआ
– कुंवर बेचैन

अभी से पाँव के छाले न देखो
अभी यारो सफ़र की इब्तिदा है
– एजाज़ रहमानी

हुस्न था उस शहर का आवारगी
और हमें थे पाँव के छाले अज़ीज़
– रसा चुग़ताई

तो हम भी रात के जंगल में सो गए होते
न बनते पाँव के छाले अगर सफ़र में चराग़
– ख़लीक़ुज़्ज़माँ नुसरत

किस क़दर ख़ुद्दार थे दो पाँव के छाले न पूछ
कोई सरगोशी न की ज़ंजीर की झंकार से
– शबनम नक़वी

अब लुत्फ़ मुझे देने लगे पाँव के छाले
दुश्वार मिरा और भी रस्ता किया जाए
– अज्ञात 

आज तक साथ हैं सरकार-ए-जुनूँ के तोहफ़े
सर का चक्कर न गया पाँव के छाले न गए
– जलील मानिकपूरी

ऐ मिरे पाँव के छालो मिरे हम-राह रहो
इम्तिहाँ सख़्त है तुम छोड़ के जाते क्यूँ हो
-लईक़ आजिज़

लईक़ आजिज़ऐ मिरे पाँव के छालो मिरे हम-राह रहो
इम्तिहाँ सख़्त है तुम छोड़ के जाते क्यूँ हो
– लईक़ आजिज़

तुम्हारी मेरी रिफ़ाक़त है चंद क़ौमों तक
तुम्हारे पाँव का छाला हूँ फूट जाऊँगा
– सुलैमान अरीब

इन राहों में वो नक़्श-ए-कफ़-ए-पा तो नहीं है
क्यूँ फूट के रोए हो यहाँ पाँव के छालो
– वहीद अख़्तर

सीने के ज़ख़्म पाँव के छाले कहाँ गए
ऐ हुस्न तेरे चाहने वाले कहाँ गए
– कलीम आजिज़