- सार
नाइजर डेल्टा में 1950 के दशक में अच्छे भाग्य की तलाश में निकले डच और ब्रिटिश कारोबारियों ने तेल की खोज की थी
डेल्टा के मैनग्रोव जंगलों और भूलभुलैया वाले रेतीले इलाकों में खतरनाक समुद्री लुटेरे घूमते हैं
गिनी की खाड़ी का गर्म पानी पश्चिमी अफ्रीका का सात देशों की सीमाओं को गोद लिए हुए है, लेकिन इसे दुनिया का सबसे खतरनाक इलाका माना जाता है
इंटरनेशनल मैरीटाइम ब्यूरो के मुताबिक 2019 के तीन महीनों में छह समुद्री जहाजों से 64 लोगों को बंधक बनाया गया
नाइजीरियाई सरकार और अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियों को अरबों डॉलर की कमाई देने वाली पाइपलाइनों के ऊपर बसे गांवों में व्यक्ति की औसत उम्र महज 45 साल रह गई है - विस्तार
व्यापारिक समुद्री जहाजों पर काम करना सुदीप चौधरी के लिए एडवेंचर के साथ-साथ बेहतर आमदनी का जरिया था, लेकिन अपने घर से बहुत दूर पश्चिम अफ्रीका के खतरनाक समुद्र में तेल टैंकर की यात्रा ने इस युवा ग्रैजुएट के जीवन में उथल-पुथल मचा दी। सुदीप चौधरी की किस्मत का फैसला ड्रग्स लेने वाले जंगली लुटेरों के दल और रहस्मयी व्यक्ति ‘द किंग’ के मिजाज पर निर्भर था।
एमटी एपेकस तेल टैंकर जहाज ने सूर्योदय के बाद नाइजीरियाई बोनी द्वीप को छोड़ा ही था। डेक पर सुदीप चौधरी की शिफ्ट पूरी होने वाली थी। जमीन की ओर देखने पर उन्हें दर्जनों दूसरे जहाज खड़े नजर आए। वहीं समुद्र तट के किनारे तेल से भरे विशालकाय सफेद टैंकों की कतार लगी हुई थी।
उन्होंने ब्रेकफास्ट करने के बाद दो फोन कॉल्स किए। एक फोन कॉल उन्होंने अपने माता-पिता को किया। इकलौती संतान होने के चलते सुदीप को अपने माता-पिता की चिंताओं का अंदाजा था। इसके बाद उन्होंने अपनी मंगेतर भाग्यश्री को फोन किया। सुदीप ने भाग्यश्री को बताया कि सब कुछ प्लान के मुताबिक ही हो रहा है और वे बाद में फिर से फोन करेंगे। इसके बाद सोने के लिए वो अपने बिस्तर पर चढ़ गए।
यह 19 अप्रैल, 2019 का दिन था। एमटी एपेकस एक छोटा और पुराना तेलवाहक जहाज है, जिसने 15 सदस्यीय चालक दल के साथ लागोस के बंदरगाह से दक्षिण की ओर नाइजर डेल्टा की यात्रा में दो दिन लगाए थे। नाइजर डेल्टा में 1950 के दशक में अच्छे भाग्य की तलाश में निकले डच और ब्रिटिश कारोबारियों ने तेल की खोज की थी।
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डेल्टा के मैनग्रोव जंगलों और भूलभुलैया वाले रेतीले इलाकों में खतरनाक समुद्री लुटेरे घूमते हैं, यह बात सुदीप को मालूम थी, लेकिन उष्णकटिबंधीय दक्षिण अटलांटिक महासागर में उस सुबह वे खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे। नाइजीरियाई नौसेना की नौकाएं गश्त कर रही थीं। एपेकस ने बोनी के बाहर जमीन से सात नौटिकल मील दूर पर लंगर डाला था, जहाज को बंदरगाह पर प्रवेश की अनुमति का इंतजार था।
गिनी की खाड़ी का गर्म पानी पश्चिमी अफ्रीका का सात देशों की सीमाओं को गोद लिए हुए है, लेकिन इसे दुनिया का सबसे खतरनाक इलाका माना जाता है। पहले यह सोमालिया के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब यह इलाका समुद्री लुटेरों के गढ़ के रूप में जाना जाता है। बीते साल फिरौती के लिए जितने भी समुद्री यात्रियों को बंधक बनाया गया, उनमें से 90 प्रतिशत लोगों को यहीं से बंधक बनाया गया था। ऐसे अपराधों पर नजर रखने वाली संस्था इंटरनेशनल मैरीटाइम ब्यूरो के मुताबिक 2019 के तीन महीनों में छह समुद्री जहाजों से 64 लोगों को बंधक बनाया गया। हालांकि इस दौरान ऐसे भी मामले रहे होंगे जिनकी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई।
यहां मिलने वाला प्रचुर तेल डेल्टा के लोगों को समृद्ध बना सकता है, लेकिन अधिकांश लोगों के लिए यह अभिशाप साबित हुआ है। तेल के फैलाव से जल और जमीन दोनों प्रदूषित हो चुके हैं। वहीं तेल इंडस्ट्री के मुनाफे पर कब्जे के लिए दशकों से चला आ रहा संघर्ष अब हिंसक अपराध का रूप ले चुका है।
नाइजीरियाई सरकार और अंतरराष्ट्रीय तेल कंपनियों को अरबों डॉलर की कमाई देने वाली पाइपलाइनों के ऊपर बसे गांवों में व्यक्ति की औसत उम्र महज 45 साल रह गई है। इलाके में सक्रिय चरमपंथी समूहों के नाम ‘कॉमिक बुक’ की याद दिलाते हैं। मसलन, नाइजर डेल्टा एवेंजर्स ने इन पाइपलाइनों को उड़ाया है, तेल उत्पादन को बाधित किया है ताकि धन और संसाधनों को ठीक से वितरित किया जाए। तेल की चोरी करने वाले काले कच्चे तेल की चोरी कर लेते हैं और उसे जंगल में छिपाकर बनाई हुई काम-चलाऊ रिफाइनरियों में संशोधित करते हैं। डेल्टा के इलाके में हिंसा का स्तर घटता बढ़ता रहता है, लेकिन खतरा हमेशा मौजूद होता है।
सुदीप कुछ घंटे के बाद शोरगुल के कारण जग गए। तेलवाहक जहाज के डेक के ऊपर बने कमांड रूम में मौजूद वॉचमैन ने तेजी से आते एक स्पीडबोट को देख लिया था। स्पीडबोट पर हथियारों से लैस नौ आदमी सवार थे। 80 मीटर लंबे जहाज पर उसकी चेतावनी की आवाजें चालकदल के सदस्यों तक पहुंच गई थीं। उन लोगों को यह मालूम था कि वे समुद्री लुटेरों को रोक नहीं सकते, लेकिन वे खुद को छिपा जरूर सकते थे।
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28 साल के सुदीप जहाज के थर्ड ऑफिसर थे। वे एपेकस पर काम कर रहे पांच अन्य भारतीयों के प्रभारी भी थे। जहाज पर कोई तेल नहीं था, लिहाजा सुदीप को यह मालूम था कि समुद्री लुटेरे फिरौती के लिए कर्मचारियों का ही अपहरण करेंगे। अमेरिकी और यूरोपीय कर्मचारियों के अपहरण से उन्हें काफी फिरौती मिल जाती हैं, क्योंकि उनकी कंपनियां सबसे ज्यादा फिरौती देती हैं। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन जहाजों पर काम करने वाले ज्यादातर कर्मचारी विकासशील देशों के हैं।
एपेकस पर अफ्रीकी कर्मचारियों के अलावा केवल भारतीय कर्मचारी मौजूद थे। सुदीप के पास पांच मिनट से भी कम समय बचा था. उन्होंने सबसे पहले अपने लोगों को जहाज के अंदरूनी हिस्से में बने इंजन रूम में एकत्रित किया और उसके बाद सीढ़ियों से ऊपर भागे, ताकि आपताकालीन अलार्म को बंद कर सकें। वापस लौटते हुए सुदीप को महसूस हुआ कि वह केवल अंडरवियर पहने हुए हैं। अंडरवियर में ही वे सो रहे थे। इसके बाद उन्होंने हमलावर को देखा। टी-शर्ट पहने हमलावरों ने अपना चेहरा ढंक रहा था। उनके पास एसॉल्ट राइफलें थीं। वे जहाज के करीब पहुंच चुके थे और नौका से जहाज पर आने के लिए सीढ़ी लगा रहे थे।
भारतीय दल ने एक छोटे से स्टोररूम में छिपने का फैसला किया। वे वहां बिजली के बल्ब, तार और अन्य सामानों के बीच छिपे हुए थे। वे अपनी तेज घबराई हुई सांस पर काबू पाने की कोशिश कर रहे थे। समुद्री लुटेरे जल्दी ही वहां तक पहुंच गए। उनकी आवाज, जहाज के इंजन की धीमी आवाज पर भारी पड़ रही थी। भारतीय नाविक कांप रहे थे लेकिन वे चुपचाप रहे।
गिनी की खाड़ी में आवाजाही करने वाले अधिकांश जहाजों में बुलेट फ्रूफ दीवारों वाले सुरक्षित कमरे बना रखे हैं, जहां ऐसी परिस्थिति में बचाव के लिए छिपा जा सके। ऐपकस में ऐसा एक भी कमरा नहीं था। इसके बाद लुटेरों की आवाज पास आती गई और जोरदार आवाज के साथ दरवाजा खुल गया।
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खड़े हो जाओ कहते हुए समुद्री लुटेरों ने फर्श पर गोली चलाई और एक सुदीप की बायीं पिडलीं में जा धंसी, हालांकि वह हड्डी से महज एक इंच की दूर रह गई थी। इस बाद उन्होंने भारतीय नाविकों को बाहर निकाला और डेक तक लेकर आए। उन्हें मालूम था कि जल्दी से निकलना होगा। कैप्टन ने संकट के समय में किया जाने वाला फोन कॉल कर दिया था और गोली की आवाज भी दूसरे जहाजों पर सुनी गई होगी।
हमलावरों ने भारतीयों को सीढ़ियों से स्पीडबोट में उतरने को कहा। स्पीडबोट की स्पीड को और बढ़ाने के लिए दो अतिरिक्त इंजन लगे हुए थे। 22 साल के चिराग को पहली बार समुद्र में तैनात किया गया था। वे नर्वस थे, लेकिन सबसे पहले उतरे। इसके बाद समुद्री लुटेरों की बंदूक के सामने दूसरे भारतीय उतरे और फिर जहाज के कैप्टन। कुल मिलाकर छह लोग बंधक बनाए गए- पांच भारतीय और एक नाइजीरियाई। स्पीडबोट में अब क्षमता से ज्यादा लोग सवार थे। जैसे-तैसे बैठने की स्थिति थी, लेकिन स्पीडबोट चल पड़ी।
उधर तेलवाहक जहाज पर चालक दल के दूसरे सदस्य डेक पर नजर आने लगे थे। इन लोगों ने खुद को समुद्री लुटेरों से छिपाने में कामयाबी हासिल कर ली थी। इन लोगों ने स्पीडबोट पर लुटेरों और अपने साथियों को डेल्टा की तरफ जाते देखा।
शिपिंग एजेंट का संदेश देर रात में आया था। संदेश में लिखा था, ‘प्रिय महोदय, ऐसा लग रहा है कि सुदीप के पोत को बंधक बना लिया गया है। जहाज के यूनानी मालिक स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। घबराइएगा मत। सुदीप को कोई नुकसान नहीं होगा। कृप्या धैर्य रखें।’
प्रदीप चौधरी अपनी पत्नी सुनीति के साथ घर के बेडरूम में बैठे थे। इस संदेश के बाद उनके मन में ढेरों सवाल घूम रहे थे। कुछ ही घंटे पहले उन्होंने अपने बेटे से बात की थी। प्रदीप ने इस संदेश को परिवार के दूसरे सदस्यों और सुदीप के नजदीकी मित्रों को फॉरवर्ड करना शुरू किया। वे तस्दीक करना चाहते थे कि क्या यह सच है? क्या किसी की उनके बेटे से बात हुई है?
सुदीप को जानने वाले हर शख्स के मुताबिक वह बचपन से शरारती थे। सुदीप अपने घर से बाहर निकलकर हमेशा कुछ एडवेंचर करने में यकीन रखते थे, हर पल उनमें एक बेचैनी दिखती थी। ऐसे में माता-पिता, खासकर मां को सुदीप की बड़ी चिंता होती थी।
चौधरी परिवार ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में रहता है और यहीं सुदीप के जीवन का ज्यादातर वक्त गुजरा है। यहां रहने वाले लोग दिल्ली, मुंबई और बंगलुरु में रहने वाले ताकतवर और प्रभावी लोगों के बारे में शायद ही कभी सोचते होंगे। लेकिन घर के ही बाहरी हिस्से में फोटोकॉपी की दुकान से चौधरी परिवार की गुजर-बसर बहुत आराम से हो रही थी।
सुदीप के घर आसपास के व्यस्त इलाके में ढेरों मंदिर हैं, लेकिन अफ्रीका जाने से पहले सुदीप का किसी भगवान में भरोसा नहीं था। जीवन को लेकर उनकी सोच स्पष्ट थी कि जैसा वह और भाग्यश्री चाहेंगे, वैसा जीवन वो बना सकते हैं। दोनों की मुलाकात टीनएज में हुई थी। भाग्यश्री अपने स्कूल में बेहद पॉपुलर थीं और इन दिनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। सुदीप- भाग्यश्री, उन महत्वाकांक्षी युवा भारतीयों में शामिल हैं जिनके सपने, परंपरागत और स्थिर सोच वाले अपने माता-पिता से बेहद अलग हैं।
भारत में करोड़ों ऐसे युवा हैं जो डिग्री और सर्टिफिकेट हासिल कर चुके हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था के ऐसे दौर में हैं जब अच्छी नौकरियों की तुलना में कहीं ज्यादा ग्रेजुएट हर साल निकल रहे हैं, यानी बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है।
सुदीप के लिए मर्चेंट शिपिंग की नौकरी, हर मुश्किल का हल था। उन्होंने इस नौकरी में अच्छे पैसे, ढेरों काम और दुनिया देखने के मौकों से जुड़ी तमाम कहानियां सुनीं थीं। ऐसी सोच रखने वाले सुदीप कोई अकेले नहीं हैं- फिलीपींस और इंडोनेशिया के बाद दुनियाभर में समुद्री जहाजों में काम करनेवाले लोगों में सबसे बड़ी संख्या भारत मुहैया कराता है। ये लोग डेक कर्मचारी, कुक, इंजीनियर और ऑफिसरों की भूमिका निभाते हैं। 2019 में यही कोई दो लाख चौंतीस हजार भारतीय विदेशी समुद्री जहाजों पर तैनात थे।
हालांकि नौकरी हासिल करने के लिए उचित क्वालिफिकेशन हासिल करना आसान नहीं होता है। सुदीप ने इसके लिए पांच साल तक पढ़ाई की और इस दौरान परिवारवालों ने लाखों का खर्चा वहन किया। 27 साल की उम्र में उन्होंने थर्ड ऑफिसर की पात्रता हासिल की। इसको सेलिब्रेट करने के लिए सुदीप ने अपने दाएं हाथ पर खास टैटू बनवाया- समुद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले त्रिकोणों के समूह में डगमग करती एक छोटी सी नाव, जिसका लंबा एंकर नाव को बीचों-बीच किसी खंजर की तरह काटता दिखाई देता है।
इन नाविकों के अपहरण के बाद अगली सुबह, जंगल से दर्जनों आदमी बाहर आए और आसमान में आधे घंटे तक गोलियां बरसाते रहे। वे जश्न मना रहे थे। पांचों भारतीयों को एक कार की आकार जितनी बड़ी लकड़ी के टुकड़े पर बैठा दिया गया था, जो मैनग्रोव के दलदल पर टिका हुआ था। नाउम्मीदी के बीच ये लोग लकड़ी के नीचे से भूरे रंग के पानी को घूर रहे थे।
बाद में इन्हें जंगल के अंदर बने जेल में ले जाया गया। सर्पीले अंदाज और संकरे रास्ते पर एक घंटे की नाव यात्रा के बाद ये लोग वहां पहुंचे। शुरुआती दिनों में जंगली लुटेरों ने साफ संदेश दे दिया कि अगर फिरौती की रकम नहीं मिली तो वो उनकी हत्या कर देंगे। यह समझाने के लिए बंधक बनाए गए नाविकों की कुछ मौकों पर पिटाई भी हुई।
सुदीप अभी भी अपने अंडरवियर में ही रह रहे थे। सारी रात मच्छरों के काटने के चलते वे शरीर खुजलाते रहते थे। उनके पांव में गोली से जख्म भी हो गया था, लेकिन उन्हें कोई बैंडेज नहीं दिया गया। जख्म पर वह दलदलीय मिट्टी की लेप लगाते थे। जंगल में इतनी नमी थी कि पांचों हमेशा पसीने में रहते थे। बिछावन के नाम पर इन्हें एक गंदा-सा मैट दिया गया था। इस पर कुछ मिनटों की नींद के बाद ये लोग जग जाते थे और अपने पुराने दिनों को याद करते थे।
एक दिन लुटेरे दलदल से एक कंकाल खींच कर ले आए और इन नाविकों को दिखाया। यह संभवत: पहले वाले बंधक का कंकाल था, जिनके बॉस ने फिरौती की रकम देने से इनकार कर दिया था। इन बंधकों को डराने की और भी तरकीबें थीं। दूसरे दिन इन लोगों को भारी-भारी पत्थरों का ढेर दिखाया गया। लुटेरों ने बताया कि इन पत्थरों को तुम लोगों के पैर में बांध कर समुद्र में फेंक देंगे, नहीं तो कुछ करो।
करीब 10 मीटर या उससे थोड़ी दूरी से इन पर निगरानी रखने के लिए गार्ड थे, जो शिफ्टों में निगरानी किया करते थे। निगरानी करनेवाले गार्ड्स मछली पकड़ते थे, मारियुआना पीते थे और स्थानीय शराब पीते थे। स्थानीय शराब ताड़ के पेड़ के रस से बनी होती थी, जिसे वहां काई-काई कहते हैं। लेकिन इन लोगों की नजरें बंधक बनाए लोगों पर बनी रहती थीं। कई बार चेतावनी देने के लिए गार्ड्स इन लोगों की तरफ फायरिंग भी कर दिया करते थे।
समय के साथ सुदीप ने इन गार्ड्स के साथ थोड़ी बहुत बातचीत की कोशिश शुरू की। वे बेहद नरमी से इन लोगों से पूछते कि आप कैसे हैं, क्या आपके बच्चे हैं? लेकिन गार्ड्स कोई जवाब नहीं देते या फिर चिल्लाते हुए चेतावनी देते- ‘हमसे बात मत करो। ऐसा लगता कि वे अपने बॉस की सख्त निगरानी में उनके आदेश का पालन कर रहे हैं, लेकिन वे अपने बॉस का नाम नहीं लेते थे। वह संभवत: जंगल में भी ही कहीं और रह रहा था, वह इन लोगों के लिए ‘द किंग’ था।’
सुदीप के अलावा 22 साल के चिराग, 21 साल के अंकित, 22 साल के अविनाश और 34 साल के मोगू के सामने सिवाए इंतजार करने के कोई दूसरा रास्ता नहीं था। उनका जीवन आलस भरी दिनचर्या में तब्दील हो चुका था। दिन में नौ दस बजे के बीच इन लोगों को एक कटोरे में नूडल्स खाने को मिलता था। एक कटोरे नूडल्स को पांचों आपस में बांटकर खाते थे। ये लोग सावधानी से खाते थे, एक गंदे से चम्मच से पांचों बारी-बारी से खाते। ठीक यही खाना उन्हें शाम में एक बार फिर मिलता था। फिर उन्हें कटोरा लौटाना होता था।
पीने के लिए इन्हें दलदल वाला पानी ही मिलता था, कई बार उसमें पेट्रोल भी मिला होता था। कई बार इतनी ज्यादा प्यास लगती कि वे नदी का नमकीन पानी पी लेते थे। नाइजीरियाई कैप्टन को एक झोपड़ी में अलग रखा गया था। उन्हें बेहतर सुविधाएं मिल रही थीं और इसके चलते भारतीय दल उनसे नफरत करने लगा था।
समय बीताने के लिए पांचों आपस में अपने घर की बात किया करते और भविष्य की योजनाओं के बारे में चर्चा करते। आसपास की प्राकृतिक छटा भी देखने को मिल रही थी- इनमें सरकते हुए सांप और मैनग्रोव की झाड़ियों में आपस में झगड़ते पक्षी शामिल थे। ये लोग प्रार्थनाएं भी करते थे, लेकिन जब समुद्री लुटेरे बंदर को देख लेते तो शांति भंग हो जाती। लुटेरे बंदर के पीछे भागते और उसे गोलियों से छलनी कर देते थे। बाद में लकड़ी जलाकर उसको पकाते थे, लेकिन यह मांस भारतीय नाविकों को कभी खाने को नहीं मिला।
पांचों भारतीय नाविक हर गुजरते दिन का हिसाब रखने के लिए लकड़ी के तख्ते पर तीर का निशान बना देते थे। कई बार वे बेहोश भी हो जाते थे। सुदीप सहित कुछ को मलेरिया भी हो गया था। चुपके-चुपके ये लोग उस हालात की कल्पना भी करते थे, जिसमें समुद्री लुटेरे उनकी हत्या करने आ गए और ये लोग उनसे भिड़ गए। अगर मरना ही है तो कम से कम तीन लुटेरों को मार कर क्यों ना मरें?
इन पलों में वे आपस में हंसते भी थे, लेकिन निराशा में ना डूबने का संघर्ष लगातार बना हुआ था, लेकिन झुलसाने वाली गर्मी में लेटे हुए शांत पलों में सुदीप सोचते थे कि यहां से बाहर निकलने के लिए क्या हो सकता है? या फिर अगर उन्हें फोन कॉल करने के मौका मिला तो वे भारतीय उच्चायोग या अपने परिवारवालों को क्या कहेंगे? हालांकि उनके दिमाग में कहीं ना कहीं वे शादी की योजना भी बना रहे थे।
समुद्री लुटेरों ने शुरुआत में कई लाख डॉलर की फिरौती मांगी थी। यह एक बहुत बड़ी राशि थी और इसका उन्हें अंदाजा था कि इसका भुगतान नहीं होगा। हालांकि ऐसी फिरौती वाले अपहरणों में काफी नेगोशिएशन होता है। हालांकि नाइजर डेल्टा के अनदेखे इलाक़े में समय हमेशा इन लुटेरों के साथ रहा है।
अपहरण के 15 दिन बाद लुटेरे सुदीप को एक नाव में बैठा कर जंगल के दूसरे हिस्से में ले गए। वहां उन्होंने सुदीप को सैटेलाइट फोन दिया ताकि वे अपने तेलवाहक जहाज के मालिक से सीधे गुहार लगा सकें। यूनानी कारोबारी कैप्टन क्रिस्टोस ट्राओस उस तेलवाहक जहाज के मालिक थे जो भूमध्यसागर के पोत पाइरेएस से अपना काम संभालते थे। उनकी कंपनी पेट्रोग्रेस इंक, पश्चिमी अफ्रीका में आप्टिमस और इनविक्टेएस जैसे रोमांचक नामों वाले कई तेलवाहक जहाजें चलाती हैं।
सुदीप को कैप्टन क्रिस्टोस के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी, लेकिन उन्होंने सुना था कि कैप्टन एक आक्रामक और बेहद गुस्से वाला शख्स है। सुदीप ने कैप्टन को बताया, ‘सर, यह बहुत ही भयानक है। हम लोग बेहद बुरी स्थिति में हैं। आप तेजी से कुछ करें नहीं तो हम यहां मर सकते हैं। हमें आपकी मदद की जरूरत है।’
जो कुछ हुआ था उससे कैप्टन क्रिस्टोस भड़के हुए थे, लेकिन फोन पर ऐसा लग रहा था कि उन पर कोई असर नहीं हुआ है। इससे समुद्री लुटेर बेहद गुस्से में आ गए। वे बार-बार कहने लगे, ‘हमें केवल पैसा चाहिए। अगर तुम्हारे लोगों ने पैसा नहीं दिया तो हम तुम्हारी हत्या कर देंगे।’
दरअसल इन लुटेरों का कारोबार काफी हद तक तेलवाहक जहाजों के मालिक की स्वीकृति पर निर्भर है। दरअसल, अधिकांश तेलवाहक जहाज और उनके कर्मचारियों का बीमा रहता है। ऐसे में कुछ सप्ताह के मोल भाव के बाद मालिक लुटेरों को पर्याप्त पैसे का भुगतान कर देते हैं, लेकिन इस बार लुटेरों का पाला एक जिद्दी मालिक से पड़ा था। ऐसे में लुटेरों को अंदाजा हो गया था कि अब नाविकों के परिवारवालों तक पहुंचना होगा।
वहीं दूसरी ओर भारत में, सुदीप के माता-पिता जाग जागकर रात बिता रहे थे। क्या हुआ है, इसको लेकर उनके पास बेहद कम जानकारी थी। लिहाजा दोनों का मन किसी अनहोनी की आशंका से घिर जाता था। उन्हें डर था कि सुदीप अब लुटेरों के चंगुल से कभी नहीं निकल पाएगा? इसकी कल्पना भी उन्हें डरा रही थी।
ऐसा कोई रास्ता भी नहीं था कि परिवार वाले लुटेरों को सीधे पैसे का भुगतान का खर्च उठा सकें। इसलिए इस पर कभी गंभीरता से विचार नहीं किया गया। भारत सरकार भी फिरौती की रकम नहीं देती है, लेकिन उन्हें दूसरी तरह की मदद की उम्मीद थी। भारत सरकार लुटेरों की तलाश में नाइजीरिया नौ सेना की मदद कर सकती थी या फिर तेलवाहक जहाज के मालिक पर फिरौती के भुगतान के लिए दबाव डाल सकती थी।
भाग्यश्री और 35 साल की सुदीप की कजिन स्वप्ना ने इसके लिए कोशिशें शुरू कर दीं। जिन लोगों को लुटेरों ने बंधक बनाया था, उनके परिवारवालों को जोड़ते हुए दोनों ने एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया, जिससे सब मिलकर अपने लड़कों को छुड़ाने की कोशिश कर सकें।
जल्दी ही भाग्यश्री के सामने यह स्पष्ट हो गया था कि नाविकों को मारने पर लुटेरों को कुछ हासिल नहीं होगा, लेकिन लुटेरों का धैर्य कब तक बना रहेगा, इस बात को लेकर भाग्यश्री नर्वस थीं। भाग्यश्री को लग रहा था कि तेलवाहक जहाज के मालिक पर सभी तरफ से दबाव डलवाकर ही वह अपने मंगेतर को रिहा करा पाएंगी। लिहाजा कार में सफर करते वक्त, बाथरूम में, घर में बिछावन पर लेटे हुए, हर वक्त वह ऑनलाइन रहने लगीं ताकि वह मदद के लिए ट्वीट कर सकें, जहां से भी मदद मिलने की गुंजाइश हो वहां ईमेल भेज पाएं।
तीन सप्ताह की चुप्पी के बाद 17वें दिन परिवार को पहली कामयाबी हासिल हुई। सुदीप के साथ बंधक बनाए गए अविनाश की बहन के पास नाइजीरियाई जंगल से फोन आया। अविनाश ने अपनी बहन को बताया कि उसके सभी साथी जीवित हैं, लेकिन उन्हें मदद की जरूरत है। अगले कुछ दिनों में दूसरे बंधकों ने भी अपने परिवारवालों को फोन किए, लेकिन ना तो भाग्यश्री के पास और ना ही चौधरी परिवार में सुदीप का फोन आया।
इसी दौरान बंधक बने एक शख्स के एक रिश्तेदार कैप्टन नसीब सामने आए। कैप्टन नसीब खुद शिपिंग इंडस्ट्री में काम करते हैं, उन्होंने अपने लोगों का हालचाल लेने के लिए समुद्री लुटेरों के सेटेलाइट फोन पर लगातार फोन करना शुरू कर दिया। वे व्हाट्सऐप ग्रुप में जो छोटी-छोटी बातचीत के क्लिप डालते, उस पर परिवार वालों को कोई भरोसा नहीं हो रहा था। एक फोन कॉल में समुद्री लुटेरा गुस्से से कैप्टन नसीब से कहता है कि जहाज के मालिक को अपने आदमियों की परवाह नहीं है और वह इन लोगों की जिंदगियों से खेल रहा है।
28वें दिन, 17 मई, 2019 को सुदीप को कैप्टन नसीब से बात करने का मौका मिला। कैप्टन नसीब ने उन्हें भरोसा दिया कि कुछ ही दिनों में संकट खत्म हो जाएगा, लेकिन तब रैंकिंग ऑफिसर होने के नाते टीम के सभी साथियों का मनोबल ऊंचा रखने की जिम्मेदारी भी सुदीप को दी। इस पर सुदीप की झरझर करती रिकॉर्डिंग में आवाज सुनी जा सकती है, जिसमें वे कहते हैं, ‘मैं कोशिश कर रहा हूं। मेरे परिवारवालों से बताइएगा कि आपने मुझसे बात की है।’
हर कुछ सप्ताह के बाद भारतीय दल को एक जंगल से दूसरे जंगल में रखा जा रहा था। जब कैप्टन क्रिस्टोस के साथ बातचीत टूट चुकी थी, तब ‘द किंग’ खुद इन बंधकों से मिलने आने लगा। वह कभी ज्यादा नहीं बोलता, लेकिन जिस सम्मान से बाकी लुटेरे उससे पेश आते थे, उससे डर महसूस होता था। समूह के लीडर जैसी ही उसकी कद-काठी थी।
सभी लुटेरे गठीली मांसपेशियों वाले थे और उनको देखकर ही डर लगता था, लेकिन ‘द किंग’ वास्तव में विशालकाय था। कम से कम उसकी लंबाई छह फीट छह इंच थी। वह अपने साथियों की तुलना में कहीं बड़ी बंदूक लेकर चलता था और गोलियों से भरी बेल्ट हमेशा उसके शरीर पर बंधी रहती।
वह हर चौथे-पांचवें दिन बंधकों के पास आता और शांति से बैठकर इनके सामने मारियुआना पीता। वह कहता कि कैप्टन क्रिस्टोस अभी भी सुन नहीं रहे हैं और इसका परिणाम निकलेगा। वह जानबूझकर ऐसा बोलता और अपने साथियों की तुलना में बेहतर अंग्रेजी में बोलता। इतने दिन बंधक रहने के चलते नाविक दुबले-पतले हो रहे थे। इनकी आंखें पीली होने लगी थीं, कई बार इन लोगों का पेशाब रक्त जैसा लाल होता था। किंग की प्रत्येक मुलाकात के दौरान बंधकों को लगता कि अब अंत आ गया।
इसके बाद हालात में नाटकीय बदलाव देखने को मिला। अब तक एपेकस के कर्मचारियों को बंधक बनाना फिरौती के लिए होने वाला अपहरण जैसा ही मामला था, लेकिन मई के आखिरी दिनों में, लकड़ी के पटरे पर दिन गुजार रहे बंधकों से दूर कई तरह की साजिशों का पता चलने लगा था, जिससे इस पूरी घटना की गुत्थियां जटिल हो रही थीं।
नाइजीरियाई नौसेना ने सार्वजनिक तौर पर तेलवाहक जहाज की कंपनी पर चोरी किए कच्चे तेल को नाइजर डेल्टा से घाना पहुंचाने में संलिप्त बताया। नाइजीरियाई नौसेना के मुताबिक एपेकस पर हमला और उसके कर्मचारियों को बंधक बनाने की घटना, दो अपराधी समूहों के बीच समझौता टूटने के चलते हुई है। इस मामले में नाइजीरियाई सेना ने कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया। तेलवाहक जहाज की कंपनी के नाइजीरियाई मैनेजर ने अवैध तेल कारोबार में संलिप्ता की बात कबूल ली।
तेलवाहक जहाज के मालिक कैप्टन क्रिस्टोस इन सबसे लगातार इनकार करते रहे। बीबीसी ने जिन ईमेल को देखा है, उसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि नाइजीरियाई नौसेना द्वारा जहाज और उनके कर्मचारी को हिरासत में लेने के पीछे भारत सरकार का हाथ है जो उन पर लुटेरों से बातचीत करने और फिरौती में अविश्वसनीय रकम देने के लिए दबाव डाल रही है। हालांकि भारतीय अधिकारियों ने इन आरोपों का खंडन किया है। नाइजीरियाई नौसेना ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
बंधक बनाए गए नाविकों के लिए यह अनिश्चितता की स्थिति थी, लेकिन कैप्टन क्रिस्टोस पर ऐसे आरोप लग चुके थे कि उनके टैंकरों के सामने नाइजीरिया में कारोबार से बाहर होने का खतरा उत्पन्न हो गया था। लिहाज़ा उन्होंने समुद्री लुटेरों तक समझौते का प्रस्ताव पहुंचाने के लिए प्रेरित किया।
13 जून को सुदीप के परिवारवालों को सरकारी सूत्रों से मालूम हुआ कि बातचीत पूरी हो चुकी है और फिरौती की रकम का इंतजाम किया जा रहा है। उधर नाविकों को भी कहा गया कि उनको रिहा किया जा सकता है। 29 जून की सुबह ये नाविक उसी तरह जागे थे जैसे पिछले 70 दिनों से जाग रहे थे। नौ-दस बजे के बीच में इन लोगों को नूडल्स खाने को दिया गया। इसी दौरान एक गार्ड ने आकर सुदीप को चुपके से बताया कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो ये जंगल में उनका आखिरी दिन हो सकता है। दो घंटे के बाद गार्ड ने आकर पुष्टि की कि पैसा लेकर आ रहा आदमी रास्ते में है।
65 साल की उम्र और दुर्बल दिखने वाला एक आदमी दोपहर में नाव से आता दिखा। वह काफी नर्वस दिख रहा था, लेकिन अमेरिकी डॉलर से भरा हुआ प्लास्टिक का बैग संभाले हुए था। वह देखने से ही समझौता करने में अनुभवी नहीं दिख रहा था। उसके आने के कुछ ही मिनटों में यह स्पष्ट हो गया कि सब कुछ ठीक नहीं है। समुद्री लुटेरों का समूह घाना के रहने वाले उस बुजुर्ग आदमी को पिटने लगा।
पैसा कम होने की बात सुनते ही ‘द किंग’ ने अपने बेल्ट से एक छोटा सा चाकू निकाला और बूढ़े के पैर में चाकू मार दिया। बूढ़ा आदमी छटपटाता हुआ दलदली जमीन पर गिर गया। इसके बाद ‘द किंग’ भारतीयों की तरफ आया और बोला कि अब पैसा लेकर आया आदमी बंधक रहेगा और पहले के छह बंधक जाने के लिए आजाद हैं। ‘द किंग’ ने कहा, ‘मेरे आदमी तुम लोगों को नहीं रोकेंगे, लेकिन अगर समुद्री लुटेरों के दूसरे समूह ने पकड़ लिया तो ये उनका मामला होगा।’ इसके बाद उसने सुदीप की आंखों में आंखें डालकर ‘बाय-बाय’ कहा।
इन नाविकों ने संकोच नहीं किया। वे पानी की ओर भागे, जहां पैसा लेकर आए बुजुर्ग की नाव खड़ी थी। सुदीप ने ड्राइवर से कहा कि वह जहां से आया है, वहां ले चले। दो महीने से भी ज्यादा वक्त बीतने के बाद भी सुदीप अपने उसी अंडरवियर में थे। हालांकि लुटेरों ने उसे एक फटी हुई टीशर्ट जरूर दी थी। मोटर के चलते ही नाव तेजी से चल पड़ी।
करीब चार घंटे के बाद ड्राइवर ने बताया कि ईंधन समाप्त हो गया, इसके बाद उसने एक घाट पर नाव रोक दिया। थोड़ी दूरी पर उन्हें एक छोटे से गांव का बाहरी हिस्सा नजर आया, जहां नंगे पांव कुछ लोग फुटबॉल खेल रहे थे। फटे पुराने कपड़े पहने नाविक उन लोगों तक पहुंचे। उन्हें बताया कि उनका अपहरण कर लिया गया था।
तब वे लोग इन्हें एक घर में ले गए। वहां पीने के लिए पानी की बोतलें दीं। रात में यह लोग जहां ठहरे वहां गांव के तीन सबसे लंबे चौड़े लोगों ने उस गेस्टहाउस की पहरेदारी की। भारतीय नाविक बेहद कमजोर हो चुके थे, लेकिन सबने खुद को सुरक्षित महसूस किया। सुदीप ने बाद में बताया, ‘ऐसा लग रहा था कि भगवान ने खुद उन लोगों को हमें बचाने के लिए भेजा था।’
इसके बाद बंधक बनाए गए नाविक जल्दी ही लागोस में थे। भारतीय नाविक मुंबई की उड़ान का इंतजार कर रहे थे। होटल के कमरे में पहली बार अकेले होने पर सुदीप ने पहले तो खुद को ठंडी बीयर से नहलाया और उसके बाद खुद नहाने गए। वहां उन्होंने अपने शरीर पर लगे चोट के निशान भी देखे। कुछ दिन पहले ही एक समुद्री लुटेरे ने मछली काटने वाले चाकू से उनके कंधे पर जख्म दे दिया था। गर्म पानी से नहाते ही जख्म की जगह सुदीप को डंक मारे जाने का अहसास हुआ। एक भारतीय राजनयिक ने सुदीप को सिगरेट का पैकेट दिया था। अगले एक घंटे में सुदीप ने एक के बाद एक करके 12 सिगरेट फूंक दिए।
इन नाविकों को रिहा हुए आठ महीने बीत गए हैं। पीली साड़ी पहने सुनीति अपने किचन की फर्श पर बैठ कर रोटियां बेल रही हैं। कुछ मीटर की दूरी पर उनके पति टीवी पर भारत-न्यूजीलैंड का क्रिकेट मैच देख रहे हैं। सुनीति ने अपने बेटे को नीचे आकर खाने के लिए बुलाती हैं तो लगता है कि वह अभी भी अपने बेटे के लिए तड़प रही हैं। हालांकि वह जानती हैं कि बेटा यहीं पास में है। उन 70 दिनों में सुदीप का 20 किलोग्राम से ज्यादा वजन कम हो गया था, गाल धंस गए थे। पहले महीने में तो हर कुछ दिन में मां उनका वजन तौलती थी और हर बढ़ते किलोग्राम के साथ खुश होतीं।
भाग्यश्री ने अपनी सास की ओर प्लेट बढ़ाया। ऐसा करते वक्त उनके हाथों में सोने का कंगन और लाल चूड़ियां कलाई तक खिसक आईं। भाग्यश्री ने बताया, ‘मुझे पूरा भरोसा था कि वे लौट आएंगे। हमारे लिए तो यह शुरुआत ही था। ऐसे में मैं उनके बिना कैसे जीवन गुजारती? मेरा ईश्वर पर पूरा भरोसा था कि वे लौट आएंगे। उन्हें आना ही था। कोई भी चीज ऐसे समाप्त नहीं हो सकती।’
आखिरकार दोनों की शादी जनवरी में हुई। सुदीप और भाग्यश्री मकान के ऊपरी तल्ले पर रहते हैं, लेकिन प्रत्येक शाम को चारों लोग ग्राउंड फ्लोर के छोटे से लिविंग रूम में एक साथ खाना खाते हैं। इस रात सुदीप की रिहाई के लिए काफी प्रयास करने वाली कजिन स्वप्ना भी आई हुई हैं। डिनर के बाद वह 1980 के दशक के बॉलीवुड का कोई प्रेम गीत गा रही हैं।
बेहद मजबूत डोर से बंधे अपने एकजुट परिवार और समुदाय में सुदीप को अब स्थिरता मिल गई है। इन दिनों सुदीप एक स्थानीय मैरीटाइम कॉलेज में युवा नाविकों को पढ़ाते हैं। सुदीप इन युवाओं को समुद्र के अंदर जाने के दौरान बरती जाने वाली सुरक्षा के बारे में भी जानकारी देते हैं। हालांकि उनके खुद की समुद्री यात्राएं कहीं पीछे छूट चुकी हैं। वे अपने दोस्तों और परिवार के साथ काफी प्रसन्न दिखते हैं, लेकिन समुद्री लुटेरों के कब्जे के यातना भरे अनुभव का उन पर क्या असर हुआ, यह बता पाना मुश्किल लगता है। ये लोग आपस में उस पर कभी कभार ही बात करते हैं।
भुवनेश्वर की अंधेरी गलियों में कार चलाते हुए सुदीप ने कहा, ‘सदमा तो अभी भी है।’ स्पीकर पर पॉप संगीत बज रहा है और सुदीप ने कहा, ‘लेकिन ठीक है। मेरी शादी हो गई। मेरा परिवार और दोस्त सब यहां हैं। अगर मैं समुद्र जाता हूं तो वह बात मेरे दिमाग में आ जाएगी।’
सुदीप के लिए संकट का दौर बीत चुका है, लेकिन बंधक बनाए दूसरे नाविकों के साथ सुदीप अभी भी बाबूगिरी के झमेले में फंसे हैं। इन लोगों के साथ जो कुछ भी हुआ, उसकी जिम्मेदारी लेने के लिए कोई सामने नहीं आया है। वापस लौटने के बाद ना तो इन लोगों को अपनी सैलरी मिली है और ना ही कोई मुआवजा मिला है।
सुदीप ने जोड़कर बताया कि तेलवाहक जहाज पर तैनाती और बंधक बनाए गए दिनों को मिलाकर सात महीने से ज्यादा होता है। उनके करीब सात लाख रुपये तेलवाहक जहाज वाली कंपनी पर बकाया हैं। कैप्टन क्रिस्टोस ने इस अपहरण के बारे में पूछे गए विस्तृत सवालों का कोई जवाब नहीं दिया है। उन्होंने ना तो सुदीप के बकाए पैसे के दावों पर कुछ कहा और ना ही समुद्री लुटेरे के कब्जे में घाना के बुजुर्ग के बारे में कुछ बताया।
उन्होंने अपने ईमेल में केवल इतना ही बताया, ‘जिन कर्मचारियों का अपहरण हुआ था, वे सुरक्षित रिहा हो कर अपने अपने घर लौट चुके हैं। यह केवल तेलवाहक जहाज के मालिक की वजह से संभव हो पाया।’ तेल के अवैध कारोबार में एपेकस के शामिल होने से कंपनी ने लगातार इनकार किया है। कंपनी के मुताबिक एपेकस बोनी द्वीप पर रिपेयर और आपूर्ति उठाने के लिए गया था। नाइजीरिया की एक अदालत में इससे संबंधित मामला लंबित है।
सुदीप के साथ जो कुछ भी हुआ, उससे शिपिंग की दुनिया में काम करने वाले मजदूरों की मुश्किलों और उनके शोषण का अंदाजा होता है। कहने को तो नियम प्रावधान भी है और श्रमिकों के हितों की सुरक्षा की बात भी होती है लेकिन सिद्धांत की इन बातों को कामकाजी पैमाने पर लागू करना संभव नहीं है।
तेल के इस ग्लोबल ट्रेड में यही नाविक फ्रंटलाइन वर्कर हैं – नाइजीरियाई तेल ब्रिटेन सहित पश्चिमी यूरोप के पेट्रोल पंपों से लेकर भारत और एशिया के दूसरे देशों के पंपों पर बिकता है। सुदीप जैसी कहानियां इस इलाके में कई हैं। इससे गिनी की खाड़ी में सुरक्षा खामियों के चलते मानवीय नुकसान का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। सोमालिया के उलट नाइजीरिया अफ्रीका में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। यह अपने नौसेना के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय नौसैनिकों को सुरक्षा की अनुमति नहीं देता है।
इतना कुछ झेलने के बाद यह देखना बेहद दुखद है कि सुदीप को दूसरा संघर्ष भी करना पड़ रहा है, लेकिन सुदीप कहते हैं कि वे इस लड़ाई को मुकाम तक पहुंचाएंगे। देर रात गाड़ी चलाते हुए उन्होंने बताया, ‘मैंने इसका सामना किया है। मैं अब जीवन में किसी भी चीज का सामना कर सकता हूं। कोई मुझे मानसिक तौर पर तोड़ नहीं सकता, क्योंकि यह मेरा दूसरा जन्म है। मैं अब दूसरा जीवन जी रहा हूं।’
मैंने सुदीप से पूछा कि क्या वाकई उन्हें ऐसा महसूस होता है, तो उनका जवाब था, ‘यह केवल फीलिंग भर नहीं है, यह मेरा दूसरा जीवन है।’ हम लोग उसके घर के बाहर पहुंच चुके थे। घर के बाहर गाड़ी पार्क करते रात के 11 से ज्यादा बज चुके थे, लेकिन घर के अंदर रोशनी थी। भाग्यश्री और माता-पिता सुदीप का इंतजार कर रहे हैं।