कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने के लिए इस वक्त देश बेशक लॉकडाउन-4 से गुजर रहा है और इसकी वैक्सीन बनाने की कोशिशें तेज हैं, लेकिन पर्यावरणविदों और वन्य जीव विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 व इसी तरह के दूसरे वायरस से पैदा होने वाली महामारियों के स्थायी इलाज का राज स्वस्थ व मजबूत इको सिस्टम में छिपा है।
विशेषज्ञों के मुताबिक, जंगली जानवरों पर पलने-बढ़ने वाले वायरस महामारी फैलाते हैं। कोविड-19 व इसी तरह के दूसरे वायरस से होने वाले ज्यादातर रोग जंगली जीव-जंतुओं से इंसानों में पहुंचते हैं। इसकी बड़ी वजह क्रियाशील व जटिल इको सिस्टम का खत्म होते जाना है। इससे वायरस जंगल से इंसानी बस्तियों की तरफ की रुख कर लेता है। नतीजतन, यह कोरोना वायरस और इसी तरह की दूसरी महामारियों को जन्म देता है।
सक्रिय और जटिल इको सिस्टम इस तरह सुरक्षा कवच का करता है काम
सामान्य अवस्था में घातक वायरस जंगली जानवरों को अपना होस्ट (पोषिता) बनाते हैं। तमाम प्रजातियों के पेड़-पौधों से भरा इको सिस्टम वायरस की नुकसानदेह मारक क्षमता को कमजोर कर देता है। वह जंगल में ही पैदा होकर वहीं खत्म हो जाता है। इससे वायरस के इंसानों तक पहुंचने की गुंजाइश नहीं बचती।
शहरी इको सिस्टम खुद ही होता है कमजोर
शहरी क्षेत्रों का इको सिस्टम न तो ज्यादा सक्रिय होता है और न ही जटिल। यह बेहद सामान्य होता है। इससे वायरस के कमजोर पड़ने की संभावना सीमित हो जाती है। जंगली जीव-जंतुओं से यह मवेशियों के जरिए इंसानों में प्रवेश कर जाता है। कोरोना वायरस भी चमगादड़ से पैंगोलीन व पैंगोलीन से इंसानों में आया है। यूएनईपी का प्रोटोकाल कहता है कि इंसानों की 60 फीसदी बीमारियां जूनोटिक्स (जंगली जानवरों से इंसानों में) होती हैं।
विशेषज्ञों की राय
कोरोना वायरस समेत महामारी फैलाने वाले वायरस जिस तरह से जंगली जीव-जंतुओं से इंसानों में आते हैं उससे इस परिकल्पना में कोई शक नहीं रह जाता है कि हम अपने इको सिस्टम को मजबूत कर महामारी से बच सकते हैं। डब्ल्यूएचओ को अपनी वन हेल्थ संकल्पना में जैव विविधिता पार्क के मॉडल को जोड़ना आवश्यक है। दिल्ली का बायोडायवर्सिटी पार्क क्रियाशील इको सिस्टम का बेहतरीन नमूना भी साबित हुआ है।
-प्रो. सीआर बाबू, पर्यावरणविद् और पूर्व प्रो-वीसी दिल्ली विश्वविद्यालय
एक क्रियाशील इको सिस्टम के जटिल खाद्य जाल (फूड वेब) में रोगजनक वायरस को खत्म करने में स्तनधारी वन्य जीवों की भूमिका अहम होती है। इनका संरक्षण स्वस्थ और मजबूत जैव विविधता वाले क्षेत्रों में ही संभव है।
-डॉ. फैयाज खुदसर, वन्यजीव विशेषज्ञ
जैव विविधता व सार्वजनिक स्वास्थ्य पर वेबीनार का आयोजन
इको क्लब, शिवाजी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय व सोसाइटी फॉर इकोलॉजिकल रिसर्च एंड नेचुरल रिसोर्सेज मैनेजमेंट के संयुक्त तत्वावधान में जैव विविधता और सार्वजनिक स्वास्थ्य विषय पर वेबीनार का आयोजन किया गया। इसमें प्रो. सीआर बाबू ने दोनों के बीच के संबंधों पर विस्तार से चर्चा की।
अफ्रीका में एचआईवी का वायरस चिम्पांजी से इंसानों में पहुंचा है।
अफ्रीका में ही इबोला वायरस चमगादड़ से इंसानों में आया है।
मलेशिया में नीपाह वायरस सुअर से इंसानों मे पहुंचा है।
चीन में कोरोना वायरस चमगादड़ से पैंगोलीन व पैंगोलीन से इंसानों में आया है। (विज्ञान पत्रिका नेचर में छपी में प्रकाशित हालिया शोध रिपोर्ट)
142 वायरस दशकों से जानवरों से मनुष्यों में फैल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की खतरे वाली प्रजातियों की रेड लिस्ट के मुताबिक 70 फीसदी वायरस घरों व खेतों में रहने से चूहे, गिलहरी, चमगादड़ समेत ज्यादातर स्तनधारी एक साथ फैलाते हैं। गाय, भेड़, कुत्ते और बकरियों जैसे पालतू जानवर वन्य जीवों व मनुष्यों के बीच वायरस के संचार सेतु का काम करते हैं।
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